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    रुद्रनाथ मंदिर उत्तराखंड 2022 | Rudranath Temple in Hindi | History | Timings

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    रुद्रनाथ मंदिर – Rudranath Temple in Hindi

    उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित रुद्रनाथ मंदिर भगवान शिव के पंच केदार मंदिरों में चतुर्थ केदार के रूप पूजनीय है। रुद्रनाथ के अलावा पंच केदार मंदिरों में प्रथम केदार के रूप में केदारनाथ, द्वितीय केदार के रूप में मध्यमहेश्वर, तृतीय केदार के रूप में तुंगनाथ और पंचम केदार के रूप में कल्पेश्वर को पूजा जाता है। 

    समुद्रतल से 2290 (7513 फ़ीट) मीटर की ऊंचाई पर स्थित रुद्रनाथ मंदिर एक प्राकृतिक रॉक मंदिर है जो की रोडोडेंड्रोन और अल्पाइन घास के मैदानों के बीच में स्थित है। हालाँकि की अन्य केदार मंदिरों की अपेक्षा रूद्रनाथ मंदिर की समुद्रतल से उंचाई बहुत कम है लेकिन सभी पंच केदार मंदिरों में रुद्रनाथ की यात्रा सबसे कठिन और सबसे लम्बी है। 

    रुद्रनाथ मंदिर का पैदल ट्रेक कुल 24 किलोमीटर लम्बा है जिसे पूरा करने के आपको कम से कम दो दिन का समय चाहिए। रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शिव के मुख की पूजा की जाती है। कहा जाता है की रुद्रनाथ एकलौता ऐसा शिव मंदिर है जहाँ पर भगवान शिव के मुख की पूजा की जाती है।

    रुद्रनाथ मंदिर का इतिहास – History of Rudranath Temple in Hindi


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    Rudranath Temple Uttrakhand | Click on image for credits

    माना जाता है की रुद्रनाथ मंदिर का निर्माण भी महाभारत काल के समय पांडवों के द्वारा करवाया गया था। मंदिर के निर्माण के सम्बन्ध में जुडी हुई पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद भगवान शिव पांडवों से बहुत अधिक नाराज हो गए थे। क्योंकि उन्होंने युद्ध के समय अपने भाइयों की हत्या की थी और इसी वजह से पांडव भातृहत्या के दोषी हो गए थे। 

    पांडवों के गुरु ऋषि व्यास ने उन्हें भातृहत्या के पाप से मुक्त होने के लिए सुझाव दिया की अगर पांडव किसी भी प्रकार से भगवान शिव को प्रसन्न करके के उन से आशीर्वाद प्राप्त कर ले तो वह सभी भातृहत्या के पाप से मुक्त हो सकते है। लेकिन भगवान शिव तो पांडवों से पहले से ही नाराज चल रहे थे इसलिए पांडव उनका आशीर्वाद प्राप्त ना कर सके इसलिए भगवान शिव काशी चले गए। 

    पांडव भगवान शिव को ढूंढ़ते – ढूंढते काशी पहुंच गए जब भगवान शिव को यह पता चला तो वह एक बैल का रूप धर कर हिमालय के केदार पर्वत चले गए।  लेकिन पांडव भगवान शिव को ढूंढते – ढूंढते केदार पर्वत भी पहुँच गए। इस बार भगवान शिव ने पांडवों से दूर जाने के लिए अपने आप को पांच अलग हिस्सों में अलग दिया और हिमालय में ही पांच अलग-अलग जगहों पर अवतरित हुए। भगवान शिव सबसे पहले केदारनाथ में अवतरित हुए यहाँ पर उनकी पीठ (कूबड़) दिखाई दी।  

    उसके बाद भगवान शिव का पेट (नाभि ) मध्यमहेश्वर में अवतरित हुए। उनकी भुजाएँ तुंगनाथ में अवतरित और उनका चेहरा (मुख ) रुद्रनाथ में अवतरित हुआ। सबसे अंत में उनके बाल (जटाएं ) कल्पेश्वर में अवतरित हुए। लेकिन पांडव भी भगवान शिव का पीछा करते-करते इन सभी पांचो स्थानों पर पहुंच गए और इन सभी जगहों में भगवान शिव के पूजा करके मंदिर स्थापित किये। अंत में भगवान शिव पांडवों की भक्ति से प्रसन्न हुए और सभी भाइयों को भातृहत्या के पाप से मुक्त होने का आशीर्वाद दिया। 

    इस प्रकार इन पांचो मंदिरो को पंच केदार मंदिर के रूप में पूजा जाने लगा। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार रुद्रनाथ मंदिर का निर्माण 8वीं सदी के पास का बताया जाता है। सर्दियों के मौसम में रुद्रनाथ के दर्शन भी 06 महीनों के लिए बंद कर दिए जाते है। सर्दियों के मौसम में रुद्रनाथ की पालकी को गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर में लाया जाता है।  06 महीने तक रुद्रनाथ की पूजा गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर में की जाती है। 

    रुद्रनाथ की पालकी – Rudranath palanquin in Hindi

    alpine_grassland_rudranath
    Alpine Grass land Rudranath | Ref img

    श्रद्धालुओं के लिये रुद्रनाथ मंदिर के दर्शन सिर्फ 06 महीने के लिये ही खुले रहते है। सर्दियों के मौसम में अत्यधिक बर्फबारी की वजह से नवंबर से लेकर मई महीने तक रुद्रनाथ मंदिर के दर्शन श्रद्धालुओं के लिए बंद रहते है। सर्दियों के मौसम में रूद्रनाथ की पालकी को गोपेश्वर में स्थित गोपीनाथ मंदिर लाया जाता है। 

    जब गर्मियों के मौसम में रुद्रनाथ की पालकी को दोबारा मंदिर लेकर जाया जाता है तो डोली ल्युति बुग्याल और पानार के रास्ते से होते हुए पितृधर पहुँचती है।  पितृधर में पितरों की पूजा करने के बाद डोली ढलबानी मैदान को पार करते हुए अंत में रुद्रनाथ मंदिर पहुंचती है।  जब डोली रुद्रनाथ पहुँच जाती है तो मंदिर में सबसे पहले वनदेवी की पूजा की जाती है।  

    ऐसा माना जाता है की वनदेवी इस मंदिर और  आसपास के क्षेत्र की रक्षा करती है। रुद्रनाथ मंदिर में एक वार्षिक मेले का आयोजन भी किया जाता है।  हिन्दू पंचांग के अनुसार श्रावण पूर्णिमा (जुलाई-अगस्त) के समय यहाँ पर एक विशाल मेले का आयोजन भी किया जाता है।  यह वार्षिक मेला अधिकांश रक्षा बंधन के समय आता है, इस मेले में स्थानीय निवासी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते है। 

    रुद्रनाथ मंदिर का वास्तु – Architecture of Rudranath Temple in Hindi


    Rudranath
    Rudranath | Click on image for credits

    हिमालय के अल्पाइन घास के मैदानों के बीच में स्थित रुद्रनाथ मंदिर भगवान शिव के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। मंदिर के निर्माण के सम्बन्ध में माना जाता है की इस मंदिर का निर्माण पांडवों के द्वारा करवाया गया था।  इतिहासकारों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 08वीं सदी के आसपास का है।  

    भगवान शिव का यह मंदिर एक छोटी सी प्राकृतिक गुफा में बना हुआ है, गुफा के बाहर की तरफ छोटे से मंदिर के निर्माण किया गया है जो की ज्यादा पुराना महसूस नहीं होता है। मुख्य मंदिर के पास में कई प्राचीन छोटे- छोटे मंदिर भी बने हुए है जिन्हे देख कर मंदिर के प्राचीन इतिहास का अंदाजा लगाया जा सकता है। 

    रुद्रनाथ के मुख्य मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव के चेहरे की पूजा की जाती है। रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शिव के नीलकंठ स्वरुप की पूजा की जाती है, कुछ लोग रुद्रनाथ को नीलकंठ महादेव भी बुलाते है। 

    रुद्रनाथ की भूगोल – Geography of Rudranath in Hindi

    view_from_rudranath
    View from Rudranath | Ref img

    रुद्रनाथ मंदिर की समुद्रतल से ऊँचाई 2290 (7513 फ़ीट) मीटर है। अल्पाइन घास के मैदानों के बीच मे स्थित रुद्रनाथ मंदिर की पैदल यात्रा पंच केदार मंदिरों में सबसे लंबी और कठिन मानी जाती है। भगवान शिव का यह प्राचीन मंदिर अल्पाइन घास के मैदानों और रोडोडेंड्रोन के घने जंगलों के बीच मे स्थित है। 

    रुद्रनाथ मंदिर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर कई प्राचीन और पवित्र जल कुंड भी बने हुए है। इन जल कुंडों में चंद्र कुंड, मन कुंड, सूर्य कुंड और तारा कुंड प्रमुख है। मंदिर से हिमालय की प्रमुख पर्वतश्रृंखलाएँ भी दिखाई देती है जिनमें – हाथी पर्वत, देव स्थान, नंदा देवी, नंदा घुंटी और त्रिशूल जैसी पर्वतश्रेणियां शामिल है। 

    मंदिर के पास में ही वैतरणी नदी बहती है। वैतरणी नदी को बैतरणी नदी और रुद्रागंगा कह कर भी बुलाया जाता है। वैतरणी नदी में रुद्रनाथ की पत्थर से बनी हुई एक मूर्ति भी स्थापित की गई है। इस नदी को स्थानीय निवासी “मोक्ष की नदी” के नाम से भी जानते है। स्थानीय निवासियों में ऐसा विश्वास है कि मृत व्यक्ति की आत्मा इसी नदी से होते हुए दूसरी दुनिया मे पहुंचती है। 

    कुछ और मान्यताएं भी इस नदी से जुड़ी हुई है जैसे कि अगर इस नदी में पितरों का पिंडदान किया जाता है तो उस दान को पवित्र शहर गया में एक करोड़ रुपये के दान के बराबर मानते है। इसी वजह से बहुत भगवान रुद्रनाथ के बहुत से भक्त इसी नदी में अपने रिश्तेदारों का पिंडदान किया करते है।

    रुद्रनाथ मंदिर में दर्शन का समय – Rudranath Temple Timings in Hindi

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    Lord Shiva

    श्रद्धालुओं के लिए रुद्रनाथ मंदिर के दर्शन सिर्फ गर्मियों के मौसम में ही खुले रहते है। क्योंकि जैसे-जैसे सर्दियां नज़दीक आती है वैसे ही रुद्रनाथ में ठंड भी बहुत तेज हो जाती है। सर्दियों के मौसम में यहाँ पर बहुत ज्यादा बर्फबारी भी होती है जिसकी वजह से रुद्रनाथ तक पैदल पहुँचना बहुत ज्यादा मुश्किल हो जाता है। 

    इस वजह से सर्दियों के मौसम में रुद्रनाथ के कपाट बंद कर दिए जाते है। सर्दियों के मौसम में रुद्रनाथ की पालकी को गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर में ले जाई जाती है। पूरे सर्दियों के मौसम में 06 महीने के लिए रुद्रनाथ की पूजा गोपीनाथ मंदिर में ही कि जाती है। हर वर्ष पंचाग देखकर अक्षय तृतीया के समय शुभ महूर्त में रुद्रनाथ की पालकी को दोबारा रुद्रनाथ मंदिर ले जाया जाता है। 

    उसके बाद रुद्रनाथ मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शन के लिये खोल दिये जाते है। रुद्रनाथ मंदिर के कपाट खुलने के बाद श्रद्धालु सुबह 06:00 बजे से लेकर शाम को 07:00 बजे तक रुद्रनाथ के दर्शन कर सकते है। रुद्रनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी गोपेश्वर के भट्ट और तिवारी परिवार के सदस्य होते है।

    2022 में रुद्रनाथ मंदिर खुलने का समय – Rudranath Temple Opening Date 2022 in Hindi

    इस वर्ष रुद्रनाथ मंदिर के कपाट 17 मई  2021 को श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोल दिए जाएंगे। 

    2022 में रुद्रनाथ मंदिर के कपाट बंद होने का समय – Rudranath Temple Closing Date 2022 in Hindi

    प्रति वर्ष अक्टूबर और नवंबर महीने में या फिर दिवाली के बाद रुद्रनाथ मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए बंद कर दिये जाते है। मंदिर के कपाट बंद करने की घोषणा प्रति वर्ष दीवाली के बाद की जाती है। 

    रुद्रनाथ मंदिर में आरती का समय – Rudranath Temple Aarti Timings in Hindi

    रुद्रनाथ मंदिर में सुबह की आरती सुबह 06:00 बजे होती है। और शाम की आरती शाम को 06:30 बजे होती है।

    रुद्रनाथ यात्रा – Rudranath Trek in Hindi

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    Rudranath Trekking | Ref img

    पंच केदार में रुद्रनाथ मंदिर की पैदल यात्रा सबसे मुश्किल मानी जाती है। रुद्रनाथ मंदिर तक पहुँचने  के लिए आपको लगभग 24 किलोमीटर पैदल चलना होगा है। इसी वजह से रुद्रनाथ मंदिर की पैदल यात्रा सबसे मुश्किल मानी जाती है। एक दूसरी वजह और  पुरे ट्रेक के दौरान आप को बहुत कम सुविधाएँ मिलती है। इसलिए रुद्रनाथ ट्रेक के दौरान आप अपने जरुरत की सभी वस्तुएं जरूर अपने साथ में रखें। ट्रेक की लम्बाई की वजह से यह यात्रा बहुत ज्यादा थकाने वाली होती है, एक सामान्य व्यक्ति 02  दिन में रुद्रनाथ ट्रेक पूरा कर सकता है। रुद्रनाथ का मुख्य ट्रेक गोपेश्वर से 05 किलोमीटर की दुरी पर स्थित सागर गांव से शुरू होता है इसके अलावा दो और ट्रेक है जहाँ से रुद्रनाथ की पैदल यात्रा की जा सकती है। एक ट्रेक तो हेलंग घाटी से शुरू होता है और दूसरा ट्रेक मंडल गांव से शुरू होता है।  लेकिन ज्यादातर श्रद्धालु और ट्रेकर्स सागर गांव से शुरू होने वाले ट्रेक से ही रुद्रनाथ की यात्रा करना पसंद करते है। रुद्रनाथ यात्रा की पूरी जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें।

    रुद्रनाथ कैसे पहुँचे – How to reach Rudranath in Hindi

    rudranath trek
    Rudranath Trek | Ref img

    हवाई मार्ग से रुद्रनाथ कैसे पहुँचे – How to Reach Rudranath by Air in Hindi

    हिमालय के घने पहाड़ो के बीच मे स्थित होने की वजह से रुद्रनाथ में किसी भी प्रकार की हवाई सेवा उपलब्ध नहीं है। रुद्रनाथ के सबसे नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून का जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है। देहरादून देश के प्रमुख हवाई अड्डों से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। 

    देहरादून हवाई अड्डे से रुद्रनाथ ( गोपेश्वर ) की दूरी 258 किलोमीटर है। रुद्रनाथ पहुँचने के लिये आपको सबसे पहले गोपेश्वर पहुँचना होता है। गोपेश्वर से 05 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सागर गाँव से रुद्रनाथ का 24 किलोमीटर लंबा ट्रेक शुरू होता है। 

    देहरादून से आपको गोपेश्वर के लिए नियमित रूप से बस और टैक्सी सेवा उपलब्ध हो जाएगी। गोपेश्वर से आप सागर गाँव पहुँच कर आप रुद्रनाथ का ट्रैक शुरू कर सकते है।

    रेल मार्ग से रुद्रनाथ कैसे पहुँचे – How to Reach Rudranath by Train in Hindi

    वैसे तो रुद्रनाथ के सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन हरिद्वार, ऋषिकेश और देहरादून के रेलवे स्टेशन है। लेकिन ऋषिकेश रेलवे स्टेशन से रुद्रनाथ (गोपेश्वर) की दूरी मात्र 241 किलोमीटर है। देश के प्रमुख शहरों से आपको ऋषिकेश के लिये नियमित रेल सेवा उपलब्ध मिल जाएगी। ऋषिकेश से नियमित रूप गोपेश्वर के लिये बस और टैक्सी सेवा उपलब्ध रहती है। 

    गोपेश्वर से 05 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सागर गाँव से आप रुद्रनाथ का ट्रैक शुरू कर सकते है। सागर गाँव से रुद्रनाथ की पैदल दूरी 24 किलोमीटर है।

    सड़क मार्ग से रुद्रनाथ कैसे पहुंचे – How to reach Rudranath by Road in Hindi

    गोपेश्वर सड़क मार्ग के द्वारा हरिद्वार, ऋषिकेश और देहरादून जैसे शहरों से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इन तीनों शहरों से गोपेश्वर के लिये नियमित रूप से बस ओर टैक्सी सेवा उपलब्ध रहती है। 

    अगर आप अपने निजी वाहन से रुद्रनाथ आ रहे है तो आप गोपेश्वर से 05 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सागर गाँव तक अपनी गाड़ी की सहायता से बड़ी आसानी से पहुँच सकते है। रुद्रनाथ की पैदल यात्रा सागर गाँव से ही शुरू होती है।

    (अगर आप मेरे इस आर्टिकल में यहाँ तक पहुंच गए है तो आप से एक छोटा से निवदेन है की नीचे कमेंट बॉक्स में इस लेख से संबंधित आपके सुझाव जरूर साझा करें, और अगर आप को कोई कमी दिखे या कोई गलत जानकारी लगे तो भी जरूर बताए।  में यात्रा से संबंधित जानकारी मेरी इस वेबसाइट पर पोस्ट करता रहता हूँ, अगर मेरे द्वारा दी गई जानकारी आप को पसंद आ रही है तो आप अपने ईमेल से मेरी वेबसाइट को सब्सक्राइब जरूर करे, धन्यवाद )

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