जयपुर दर्शनीय स्थल | Jaipur Places to visit | Jaipur Tourist Places | Jaipur in Hindi | Places to visit in Jaipur | Part- 01

आमेर के महाराजा सवाई जयसिंह ने आज से 287 वर्ष पहले, 18 नवंबर 1727 को उस समय के सबसे व्यवस्थित और सुनियोजित शहर की स्थापना की और आज यह खूबसूरत शहर राजस्थान की राजधानी जयपुर के नाम से प्रसिद्ध है। जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह के नाम पर इस शहर का नाम जयपुर रखा गया है।
जयपुर वर्तमान में सिर्फ राजस्थान ही नहीं बल्कि पूरे भारत में पर्यटन का सबसे बड़ा केंद्र है। आप जयपुर की प्रसिद्धि का अनुमान आप सिर्फ इस बात से लगा सकते है की राजस्थान की इस राजधानी में प्रति वर्ष घूमने आने वाले देशी और विदेशी पर्यटकों की संख्या 20 लाख से भी ज्यादा है।
यहाँ आने वाला प्रत्येक पर्यटक औसतन 1300 रुपये प्रतिदिन दिन के हिसाब से खर्च करता है। पर्यटन के अलावा ब्लू पॉटरी, हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग, हैंडीक्राफ्ट और जेवेलरी यह इस शहर के कुछ ऐसे पारम्परिक उद्योग है जिनके कारण आज जयपुर की पूरे विश्व में एक अलग पहचान स्थापित हुई है।
जयपुर शहर गुलाबी नगरी के नाम से प्रसिद्ध है और शहर के अंदर आप को ग्रामीण और आधुनिक परिवेश की झलक देखने को मिलती है, चारदीवारी के अंदर रहने वाले जयपुरवासी आज भी पुराने तौर- तरीके से रहना पसंद करते है और चारदीवारी के बाहर बसा हुआ नया जयपुर आप को पूरी तरह से आधुनिक जीवन के रंगों में ढला हुआ दिखाई देता है।
एक समय था जब जयपुर आमेर रियासत के अधीन हुआ करता था लेकिन आज जयपुर की पहचान इतनी बड़ी हो चुकी है की आमेर जयपुर शहर की ऐतिहासिक विरासत के तौर पर जाना जाता है। समय के साथ जयपुर शहर आज भारत के सबसे विकसित शहरों में शामिल हो रहा है लेकिन साथ ही साथ यह शहर और यहां के स्थानीय निवासी अपनी ऐतिहासिक धरोहरों के प्रति आज भी बहुत जागरूक है।
स्थानीय प्रशासन द्वारा इस शहर के सभी ऐतिहासिक महत्त्व के स्थानों को सुरक्षित रखने पर विशेष ध्यान दिया जाता है। जुलाई 2019 में यूनेस्को द्वारा जयपुर को वर्ल्ड हेरिटेज सिटी का दर्जा दे दिया गया। अरावली पर्वतमाला से तीन तरफ से घिरे हुए जयपुर शहर की पहचान यहां की स्थापत्य कला से होती है, शहर की चारदीवारी के अंदर बने हुए अधिकांश पुराने घरों में गुलाबी और लाल रंग के धौलपुर के पत्थरों का बहुत अधिक मात्रा में उपयोग हुआ है।
जयपुर को गुलाबी नगरी कहे जाने की कहानी बेहद दिलचस्प है, 1876 में जब इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ और युवराज अल्बर्ट (प्रिंस ऑफ वेल्स) जब जयपुर आने वाले थे तब उन के सम्मान में महाराज सवाई रामसिंह ने पूरे जयपुर शहर को गुलाबी रंग से सजा दिया था,उसी समय से जयपुर शहर गुलाबी नगरी के नाम से जाना जाने लगा।
दिल्ली, आगरा और जयपुर को अगर आप लोग भारत के नक्शे मे ध्यान से देखते हो तो नक्शे में एक प्रकार का त्रिकोण बनता है जिसकी वजह से इन तीनों जगहों को भारत के टूरिस्ट सर्किट गोल्डन ट्रायंगल (India’s Golden Triangle) कहा जाता है।
जयपुर शहर के निर्माण के समय इसकी सुरक्षा पर भी बहुत ध्यान रखा गया था, बाहरी आक्रमणों से सुरक्षा के लिए शहर के चारों तरफ बड़ी-बड़ी दीवारों का निर्माण किया गया साथ में ही शहर में प्रवेश करने के लिए सात दरवाजे बनाये गए फिर कुछ समय के बाद आठवाँ दरवाजा बनाया गया जिसे “न्यू गेट” कहा जाता है।
आधुनिक शहरी योजनाकार इस शहर को सबसे व्यस्थित और नियोजित शहरों में गिनते है। जयपुर के वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य का नाम भारत के सबसे सम्मानित वास्तुकारों में लिया जाता है। गुलाबी नगरी के अलावा जयपुर को भारत का पेरिस भी कहा जाता है। जयपुर के वास्तु से जुड़ी हुई एक बात बहुत प्रसिद्ध है ऐसा कहा जाता है अगर जयपुर के वास्तु को अगर नापा जाये तो इसके नाप में एक सेंटीमीटर का फर्क भी नहीं मिलेगा।
जयपुर का इतिहास – History of Jaipur in Hindi

17वीं शताब्दी में जब मराठा साम्राज्य का विस्तार लगभग पूरे भारत में हो चुका था और मुगल सल्तनत के सुल्तानों की पकड़ लगातार कमजोर हो रही थी यह ऐसा समय था जब पूरे भारत में राजनीतिक उथल पुथल मची हुई थी,उस समय राजपुताना की आमेर रियासत धीरे-धीरे एक बड़ी ताकत के तौर पर उभर रही थी।
आमेर रियासत पर महाराजा सवाई जयसिंह का शासन था और अपने शासनकाल में महाराजा ने आमेर का विस्तार मीलों तक कर लिया था। इतनी बड़ी रियासत होने से सवाई जयसिंह के सामने आमेर रियासत को सुचारू रूप से चलाने में दिक्कत आने लगी। और इस वज़ह से आमेर की नई राजधानी के रूप में जयपुर शहर अस्तित्व में आया।
जयपुर के निर्माण की सबसे पहली नींव कहाँ रखी गई इस बात को लेकर इतिहासकारों में आज भी मतभेद बने हुए है। कुछ इतिहासकारों का यह मानना है की तालकटोरा के पास स्थित शिकार की होदी के पास इस शहर के निर्माण की नींव रखी गई थी। कुछ का यह मानना है ब्रह्मपुरी और आमेर के पास एक जगह है “यज्ञयूप” जिसके नजदीक इस शहर का निर्माण शुरू हुआ।
लेकिन चन्द्रमहल, बाजार और तीन चौपड़ को लेकर सभी इतिहासकार एक मत है यह सारे स्थान एक साथ बने थे। मराठा उस समय लगातार अपने साम्राज्य का विस्तार करने में लगे हुए थे और महाराजा सवाई जयसिंह ने मराठाओं के आक्रमण से बचने के लिए और पूरे शहर की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए शहर के चारों तरफ चारदीवारी का निर्माण करवाया गया ।
शहर में प्रवेश करने के लिए सात मजबूत दरवाजों का निर्माण भी किया गया। इतिहासकारों का यह भी मानना है की जब इस शहर का निर्माण शुरू हुआ था तब उस समय यह देश का पहला ऐसा शहर था जिसे पूरी योजना के साथ बनाया जा रहा था। जयपुर शहर के निर्माण के समय आमेर की बढ़ती आबादी और पानी की समस्या का पूरी तरह से ध्यान रख कर ही इसका निर्माण शुरू किया गया था।
इस शहर का निर्माण 1727 में शुरू हुआ और शहर के मुख्य स्थानों के निर्माण में लगभग 4 वर्ष का समय लगा। जयपुर को नौ खंडों में बांटा गया था जिसमें दो खंडों में राजकीय इमारतें और राजमहलों का निर्माण किया गया। इस पूरा शहर निर्माण प्राचीन भारतीय शिल्पशास्त्र के आधार पर किया गया है। इस शहर के मुख्य वास्तुविद एक बंगाली ब्राह्मण विद्याधर भट्टाचार्य थे।
विद्याधर भट्टाचार्य आमेर दरबार में सिर्फ एक लेखा-लिपिक थे, लेकिन वास्तुकला में इनको बेहद रुचि थी। विद्याधर भट्टाचार्य से प्रभावित हो कर महाराजा सवाई जयसिंह ने इस शहर के निर्माण की योजना बनाने की पूरी जिम्मेदारी इनको सौंप दी। शहर में राजमहल, हवेलियां, आम नागरिकों के आवास, बाग-बगीचे और राजमार्गों का निर्माण बेहद सुनियोजित तरीके से किया गया है।
नगर निर्माण के समय वास्तु और ज्यामिति का पूरा ध्यान रखा गया है। शहर की सुरक्षा के लिए पश्चिमी पहाड़ी नाहरगढ़ किले का निर्माण किया गया, जयगढ कीले में हथियार बनाने के लिए कारखाने बनवाये गए। उस समय की सबसे बड़ी जयबाण तोप आज भी जयगढ़ किले में स्थित है।
जयपुर शहर को नौ आवासीय खण्डों में बसाया गया है, इन खंडों को चौकड़ी कह जाता था। सबसे बड़ी चौकड़ी में रानिवास, राजमहल, जंतर-मंतर, गोविंददेवजी के मंदिर का निर्माण किया गया शेष बची चौकड़ी में हवेलियां, कारखाने और आम नागरिकों के आवास का निर्माण किया गया।
सवाई जयसिंह आमेर की प्रजा को अपने परिवार के जैसा ही मानते थे इसलिए शहर के निर्माण के समय आम नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताओं का पूरा ध्यान रखा गया जैसे- साफ पानी, लघु उद्योग के कारखाने, बाग-बगीचे और बारिश के पानी को एकत्रित करना जैसी सभी बातों का शहर के निर्माण के समय पूरा ध्यान रखा गया।
जयपुर में अलग-अलग समय पर और शहर वास्तु के अनुसार रामनिवास बाग, हवामहल,ईसरलाट और शैक्षणिक संस्थानों को बनवाया गया। सवाई जयसिंह ने अपने शासनकाल के समय जयपुर में हस्तकला,शिक्षा,गीत संगीत और रोजगार को बहुत प्रोत्साहन दिया था। दो सौ वर्ग किलोमीटर में फैला हुये जयपुर का वास्तुशिल्प और स्थापत्य का बेजोड़ उदाहरण प्रस्तुत करता है ।
आमेर का किला जयपुर – Amer Fort Jaipur Places to visit in Hindi

जयपुर का सबसे प्रसिद्ध पर्यटक स्थल आमेर का किला है। कछवाहा राजपूत राजाओं से पहले आमेर पर मीणाओं में चन्दा वंश के शासक एलान सिंह का शासन था। 967 ई° में मीणाओं के राजा एलान सिंह द्वारा आमेर के पुराने किले की स्थापना की गई और आमेर का कस्बा बसाया गया, वर्तमान समय में जो आमेर का किला दिखाई देता है उसका निर्माण कछवाहा राजपूत शासक सवाई मानसिंह ने मीणा शासकों द्वारा किये गए पुराने आमेर के किले के अवशेषों पर किया है।
सवाई मानसिंह के पश्चात 150 वर्षों तक आमेर के किले में कछवाहा राजपूत वंश के अलग-अलग राजाओं ने आमेर के किले में सुधार और विस्तार किया। आमेर का किला हिन्दू वास्तु शैली का एक अद्भुत उदहारण है, सुरक्षा की दृष्टि से किले की दीवारों को विशाल बनाया गया है और किले में प्रवेश के लिए कई बड़े-बड़े दरवाजों का निर्माण किया गया है।
किले के निर्माण में लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर का इस्तेमाल किया गया है तथा इस भव्य किले का निर्माण पहाड़ के चार स्तरों पर किया गया है। किले के चारों भागों में विशाल प्रांगण बने हुए है। जिनमे क्रमशः दीवान-ए-आम, दिवान-ए-खास, शीश महल और सुख निवास कह कर बुलाया जाता है।
सुख निवास में भीषण गर्मी से राहत पाने के लिए कृत्रिम जल धारा का निर्माण किया गया था, गर्मी के मौसम में जल धारा से पानी बहता रहता था जिस वजह से सुख निवास का वातावरण शीतल बना रहता था। आमेर के किले के अंदर से जयगढ किले तक जाने के लिए एक गुप्त सुरंग का निर्माण किया गया था यह सुरंग आज भी सुचारू रूप से काम करती है।
आमेर घूमने आने वाले पर्यटक आज भी इस सुरंग से जयगढ़ किले तक जा सकते है। आमेर किले का निर्माण इस तरह से किया गया है की किले के ठीक नीचे बनी हुई मावठा झील में इसका प्रतिबिम्ब दिखाई देता है। आमेर किले की कम्पलीट ट्रेवल गाइड के लिए यहाँ क्लिक करें।
शिला देवी मंदिर जयपुर – Shila Devi Temple Jaipur Tourist Places in Hindi

आमेर के किले में स्थित शिला देवी मंदिर में स्थापित शिला देवी की मूर्ति को अम्बा माता का रूप माना जाता है इसलिए इस किले का नाम (आमेर) आम्बेर रखा गया। कछवाहा राजपूत राजा सवाई मानसिंह द्वितीय द्वारा शिला देवी मंदिर की स्थापना की गई। स्थानीय निवासियों और राजपुत समुदाय के अनुसार शिला देवी कछवाहा राजपूतों और राजपरिवार की कुलदेवी है।
हिन्दू समाज में नवरात्रों की बहुत मान्यता है। और इस मंदिर में नवरात्र के समय लक्खी मेले का आयोजन किया जाता है। मेले के समय इस मंदिर स्थानीय और बाहर से आने वाले भक्तों की भारी भीड़ रहती है। शिला देवी की मूर्ति के समीप भगवान गणेश और मीणाओं की कुलदेवी हिंगला माता की मूर्तियां भी स्थापित है।
आमेर पर कछवाहा राजपूत राजाओं से पहले मीणाओं का शासन था। शिला माता का ऐतिहासिक मंदिर आमेर किले के जलेब चौक में स्थित है। जलेब चौक से मंदिर तक पहुंचने के लिए कुछ सीढ़ियां चढ़ना पड़ता है। माता की प्रतिमा एक शिला पर बनाई गई है इसी वजह से इनको शिला देवी नाम से पुकारा जाने लगा।
शिला देवी मंदिर जयपुर में दर्शन का समय – Shila Devi Temple Jaipur Timings in Hindi
सुबह के 06:00 से लेकर सुबह के 10:30 तक और शाम को 04:00 से लेकर रात के 08:00 बजे तक
शिला देवी मंदिर जयपुर में प्रवेश शुल्क – Shila Devi Temple Entry Fess in Hindi
प्रवेश निःशुल्क
हाथी गांव जयपुर – Elephant Village Jaipur places to visit in Hindi

आमेर से महज 4 किलोमीटर दूर स्थित हाथी गांव की स्थापना 2010 में राजस्थान सरकार ने जयपुर में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए की। स्थानीय प्रशासन का एक उद्देश्य यह भी था की हाथी जैसे विशाल और शानदार जानवर को एक प्राकृतिक आवास मुहैया करवाना और साथ ही साथ उचित देखभाल करना तथा इनकी देखभाल करने वाले परिवारों को उचित आश्रय और खाने-पीने की सुविधा प्रदान करना था।
हाथी गांव में जितने भी हाथी है उन सभी को दक्षिण भारत से यहाँ पर लाया गया है क्योंकि राजस्थान हाथियों का प्राकर्तिक आवास स्थल नहीं है और इनकी देखभाल करने वाले भी स्थानीय निवासी नहीं है। हाथी गांव की यात्रा अवधि लगभग 3-4 घंटे की हो सकती है और आप की इस यात्रा अवधि की यादगार बनाने के लिए कई तरह के कार्यक्रम किये जाते है जैसे हाथी पर रंग लगाना, उन्हें प्राकर्तिक आवास में नहाते हुए देखना और खाना खिलाना।
वर्तमान में हाथी की सवारी को इतना ज्यादा प्रमोट नहीं किया जाता है लेकिन अगर पर्यटक चाहे तो उसे थोड़ी देर के लिए हाथी की सवारी करने का मौका मिल सकता है। हाथियों की देखभाल करने वाले परिवार से मिलना और बातचीत करना एक अलग अनुभव हो सकता है साथ ही यह पर्यटकों को हाथियों को नजदीक से जानने में बहुत मददगार भी साबित होता है।
अगर आप किसी तरह से आमेर किले पर हाथी की सवारी नहीं कर पाये है तो हाथी गांव के प्राकर्तिक परिवेश में हाथी की सवारी करना आप के लिए एक अलग अनुभूति होगी। हाथी गांव की कम्पलीट ट्रेवल गाइड के लिए यहाँ क्लिक करें।
जयगढ किला जयपुर – Jaigarh Fort Places to visit in Jaipur in Hindi

1667 में निर्मित जयगढ किले का निर्माण मिर्जा राजा सवाई जयसिंह ने मुख्य रूप से आमेर किले की रक्षा हेतु करवाया था और सवाई जयसिंह के नाम पर इस किले का नाम जयगढ रखा गया। यह किला आमेर के किले से 400 फुट ज्यादा ऊंचाई पर बना हुआ है और जिस पहाड़ पर यह किला बनाया गया है उसे चील का टीला कहा जाता है।
जयपुर के प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों में से एक जयगढ कीले को विजय का किला भी कहते है इस किले में दो प्रवेश द्वार जिन्हें क्रमशः डूंगर दरवाजा और अवानी दरवाजा कहते है यह दोनों दरवाजे किले के दक्षिण और पूर्वी भाग में बने हुए है। जयगढ किले के निर्माण के बाद इसमें सेना के रहने के लिए पूरी व्यवस्था की गई थी और साथ में हथियार बनाने के कारखाने भी बनाये गए।
किले की सुरक्षा के लिए लंबी दीवार का निर्माण किया गया जिसकी लंबाई 3 किलोमीटर है। किले के ऊपरी क्षेत्र में उस समय की सबसे बाद तोप जयबाण को स्थापित किया गया। जयबाण तोप का न्यूतम वजन 50 टन माना जाता है और इस तोप के बैरल की लंबाई 8 मीटर है। किले में एक सात मंजिला इमारत भी बाजी हुई है जिसे दिया बुर्ज के नाम से जाना जाता है इस इमारत से जयपुर शहर का बहुत मनोरम और सुंदर दृश्य दिखाई देता है।
जयगढ किले को देखने का समय – Jaigarh Fort Timings in Hindi
जयगढ़ किले को देखने का समय सुबह 9:00 बजे से शाम 4:30 बजे तक है और 1-2 घंटे में आप पूरे किले को देख सकते हैं।
जयगढ़ फोर्ट में प्रवेश शुल्क – Jaigarh Fort Entry Fee in Hindi
भारतीय पर्यटक – 35 / – रु
विदेशी पर्यटक – 85 / – INR
(छात्रों के लिए प्रवेश शुल्क में छूट प्रदान की गई है)
नाहरगढ़ किला जयपुर – Nahargarh Fort Jaipur Tourism in Hindi

जयपुर के पश्चिमी भाग मैं स्थित अरावली पर्वतमाला के छोर पर बना हुए नाहरगढ़ किले का निर्माण सवाई राजा जयसिंह ने द्वितीय ने 1734 ई° में आमेर किले की सुरक्षा की दृष्टि से करवाया था। नाहरगढ़ किले के नामकरण के पीछे एक मजेदार किवंदती है ऐसा माना जाता है की नाहर सिंह नाम के एक राजपूत की आत्मा इस किले में भटका करती है और जब किले का निर्माण कार्य चल रहा था तब यह आत्मा अनके प्रकार की बाधा उत्पन्न करती थी।
इस आत्मा से छुटकारा पाने के संबंध में तांत्रिकों से सलाह ली गई और तांत्रिकों की सलाह पर इस किले का नाम नाहरगढ़ रखा गया। सवाई राजा जयसिंह के बाद सवाई रामसिंह और सवाई माधोसिंह ने भी नाहरगढ़ किले के अंदर भवनों का निर्माण करवाया जिनकी स्थिति अभी ठीक है और जो पुराने निर्माण है उनकी स्थिति थोड़ी खराब हो चुकी है।
सवाई राजा रामसिंह के नौ रानियाँ थी और उन्होंने अपनी नौ रानियों के लिए अलग अलग आवास कक्ष बनाये यह सभी आवास कक्ष बहुत सुंदर बने हुए है। इन सभी कक्षों में शौचालय के लिए उस समय की आधुनिक सुविधाओं का उपयोग किया गया था। नाहरगढ़ किले से शाम के वक़्त सूर्यास्त को देखनाऔर अंधेरा होने के बाद रोशनी में नहाये हुए जयपुर शहर को देखना एक अलग ही आनंद की अनुभूति प्रदान करता है।
नाहरगढ़ किले को देखने का समय – Nahargarh Fort Timings in Hindi
नाहरगढ़ किले को देखने का समय सुबह 10:00 बजे से शाम 5:30 बजे तक रहता है।
नाहरगढ़ किले में प्रवेश शुल्क – Nahargarh Fort Entry Fee in Hindi
भारतीय पर्यटक – 50 / – रु
विदेशी पर्यटक – 200 / – रु
(छात्रों के लिए प्रवेश शुल्क में छूट प्रदान की गई है।)
जयपुर वैक्स म्यूजियम – Jaipur Wax Museum in Hindi

जयपुर में नवनिर्मित जयपुर वैक्स म्यूजियम का उदघाटन 17 दिसंबर 2016 को नाहरगढ़ किले पर किया गया। यह दुनिया का एकलौता ऐसा वैक्स म्यूजियम है जिसे किसी ऐतिहासिक धरोहर पर स्थापित किया गया है। बहुत ही कम समय में जयपुर वैक्स म्यूजियम नाहरगढ़ घूमने आने वाले पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन गया।
म्यूजियम के अन्दर बॉलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता अमिताभ बच्चन को मिलाकर कुल 32 वैक्स प्रतिमाएं स्थापित की गई है। जयपुर वैक्स म्यूज़ियम में लगभग सभी क्षेत्रों जैसे खेल, राजनीति, फ़िल्म अभिनेता और वैज्ञानिकों की वैक्स से बनी हुई विश्वस्तरीय प्रतिमाएं देखने को मिलती है।
बच्चों को आकर्षित करने के लिए म्यूज़ियम के अंदर प्रसिद्ध कार्टून पात्र और सुपरहीरो जैसे नोबिता, डोरीमोन, स्पाइडर मैन, आयरन मैन आदि की वैक्स प्रतिमाएं बनाई गई है। जयपुर के इतिहास और राजपरिवार से जुड़ी हुई कई वैक्स प्रतिमाएं भी इस वैक्स म्यूज़ियम में शामिल की गई है।
जयपुर वैक्स म्यूजियम में लगभग सभी आयु के पर्यटकों को ध्यान में रख कर ही बनाया गया है। वैक्स म्यूजियम के साथ में शीश महल बनाया गया है जिसमें 100 कारीगरों के मदद से लगभग 2.5 मिलियन कांच के टुकड़े लगाए गए है। जयपुर वैक्स म्यूजियम सप्ताह में सोमवार से लेकर शुक्रवार तक खुला रहता है।
जयपुर वैक्स म्यूजियम देखने का समय – Jaipur Wax Museum Timings in Hindi
संग्रहालय सुबह 10:00 बजे से शाम 6:30 बजे तक खुला रहता है (जयपुर वैक्स संग्रहालय सप्ताह में सोमवार से शुक्रवार तक खुला रहता है)।
जयपुर वैक्स म्यूजियम में प्रवेश शुल्क – Jaipur Wax Museum Entry Fee in Hindi
यदि आप केवल मोम संग्रहालय देखते हैं तो शुल्क 350 / – INR है और शीश महल के साथ 500 / – INR है।
पन्ना मीणा का कुंड जयपुर – Panna Meena Kund Jaipur Places to visit in Hindi

जयपुर घूमने आने वाले लगभग सभी पर्यटक इस जगह के बारे में कुछ नहीं जानते है आमेर किले से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है पन्ना मीणा का कुंड यह कुंड हिन्दू वास्तु कला का यह बेजोड़ नमूना है। इस कुंड में अद्भुत आकार की सीढ़ियों का निर्माण किया गया है जो की अपने अष्ठभुजा किनारों और बरामदों के लिए प्रसिद्ध है।
कुंड में बनी हुई तीन तरफा सीढ़ियां आभानेरी में स्थित “चाँद बावड़ी”, और “हाड़ा रानी की बावड़ी” के समान प्रतीत होती है। पन्ना मीणा कुंड को सुंदरता प्रदान करने के लिए इसके किनारों पर छोटी छतरियों और देवालयों का निर्माण किया गया है। पुराने समय में इस कुंड का उपयोग जल भंडारण के लिये किया जाता था।
पन्ना मीणा कुंड का इतिहास स्पष्ट रूप से नहीं पता चलता लेकिन ऐसा माना जाता है की महाराजा जयसिंह के शासन के समय पन्ना मीणा नाम के व्यक्ति ने इस कुंड के निर्माण में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया था जिससे खुश हो कर महाराजा ने इस कुंड का नाम पन्ना मीणा कुंड रख दिया।
एक मान्यता मीणा शासकों के पतन से भी जुड़ी हुई है कहा जाता है की मीणाओं का पराजित करना लगभग असम्भव था क्यूंकि मीणा हर वक़्त शस्त्र को अपने पास में रखते थे लेकिन दीपावली के समय सभी मीणा अपने शस्त्र उतार कर इस कुंड में स्नान करने आया करते थे। इस राज का पता एक ढोल बजाने वाले ने गलती से कछवाहा राजपूतों का बता दिया।
उसके बाद दीपावली के समय जब मीणाओं ने अपने शस्त्र उतार कर जब कुंड में प्रवेश किया तो राजपूतों ने मीणाओं पर आक्रमण करके उन्हें हरा दिया। वर्तमान में पन्ना मीणा कुंड प्रशासन की अनदेखी का शिकार हो रखा है जिससे इसके कई हिस्सों में सीलन की वजह से दीवारों का प्लास्टर टूट रहा है। पन्ना मीणा की बावड़ी में प्रवेश निःशुल्क है, दिन के किसी भी समय आप पन्ना मीणा का कुंड देखने जा सकते है।
पन्ना मीणा का कुंड जयपुर में देखने का समय – Panna Meena Kund Jaipur Timings in Hindi
सुबह 07:00 बजे से लेकर शाम को 06:00 बजे तक।
पन्ना मीणा का कुंड जयपुर में प्रवेश शुल्क – Panna Meena Kund Jaipur Entry Fee in Hindi
प्रवेश निःशुल्क।
जल महल जयपुर – Jal Mahal Jaipur Tourist Places in Hindi

जयपुर में सबसे ज्यादा देखे जाने वाले पर्यटक स्थलों में से जलमहल मानसागर झील के मध्य में बना हुआ एक बेहद सुंदर ऐतिहासिक महल है। सवाई जयसिंह 1799 में इस महल का निर्माण करवाया तथा इसके निर्माण में मध्यकालीन महलों की तरह मेहराब, बुर्ज और छतरियों का निर्माण किया गया है। जलमहल एक दुमंजिला भवन है जिसे वर्गाकार रूप में बनाया गया है।
सवाई जयसिंह ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया था। यज्ञ के बाद मानसागर झील में पंडितों और अपनी रानियों के साथ स्नान के लिए झील के मध्य में जलमहल का निर्माण करवाया था। जलमहल के निर्माण के लिए उस समय यहां बहने वाली दर्भावती नदी पर बांध का निर्माण करके सबसे पहले मानसागर झील का निर्माण किया गया।
झील में जलमहल के निर्माण के लिए राजपूत शैली से बनी हुई नौकाओं का उपयोग लिया गया था। जलमहल का उपयोग राजसी उत्सवों के समय किया जाता था और राजाओं द्वारा अपनी रानी के साथ निजी समय बिताने के लिये भी किया जाता था। गर्मियों के मौसम में भी यह महल काफी ठंडा रहता है क्यूंकि इस महल के कुछ तल पानी के अंदर भी निर्मित किये गए है।
चांदनी रात के समय झील के मध्य में बना हुआ महल किसी काल्पनिक जगह के जैसा प्रतीत होता है। वर्तमान में जलमहल को एक पक्षी अभ्यारण के रूप में विकसित किया जा रहा है। जलमहल के पास बनी हुई नर्सरी में लगभग 1 लाख वृक्ष लगाए गए है और इस नर्सरी में राजस्थान के सबसे ऊंचे पेड़ भी पाये जाते है। जलमहल का प्रवेश निःशुल्क है और दिन के किसी भी समय आप जलमहल देखने जा सकते है।
जल महल देखने का समय – Jal mahal Jaiapur Timings in Hindi
दिन में किसी भी समय।
जल महल में प्रवेश शुल्क – Jal Mahal Entry Fee in Hindi
प्रवेश निःशुल्क।
कनक वृंदावन जयपुर – Kanak Vrindavan Jaipur in Hindi

280 वर्ष पूर्व निर्मित कनक वृंदावन घाटी आज जयपुर के स्थानीय लोगो के लिए पिकनिक का सबसे पसंदीदा स्थल है। कनक वृंदावन घाटी में घूमने के लिए सभी आयु वर्ग के लोग आना पसंद करते है चाहे वो बच्चे, बूढ़े, परिवार, युगल और नव विवाहित जोड़े सभी यहां पर समय बीतना पसंद करते है। महाराजा सवाई जयसिंह ने इस उद्यान का नाम कनक वृंदावन रखा था जलमहल के पास स्थित कनक वृंदावन घाटी का इतिहास बड़ा रोचक है ।
वृंदावन से जब भगवान गोविंददेवजी के विग्रह को विदेशी तुर्क आक्रांताओं से बचाकर जयपुर लाया गया था तब महाराजा सवाई जयसिंह ने इस स्थान पर अश्वमेध यज्ञ करके भगवान की प्रतिमा को एक भव्य मंदिर में स्थापित किया गया। भगवान गोविंददेवजी के विग्रह को वृंदावन के उपवन क्षेत्र लाया गया था इसलिए इस घाटी का नाम कनक वृंदावन रख दिया गया। कनक वृंदावन में भगवान कृष्ण का मंदिर आज भी स्थित है।
उद्यान के अंदर जगह-जगह पर भगवान कृष्ण की गोपियों के साथ अलग-अलग मुद्राओं में नृत्य करते हुए अनेक प्रतिमायें बनाई गई है। कनक वृंदावन उद्यान समतल मैदान पर नहीं बना हुआ है बल्कि यह आमेर में स्थित अरावली पर्वतमाला की घाटी में स्थित है इसलिए वैन क्षेत्र और उद्यान में फ़र्क करना मुश्किल हो जाता है। कनक वृंदावन के पास ही मानसागर झील और जलमहल स्थित है जिसकी वजह से इस जगह की खूबसूरती कई गुना बढ़ जाती है।
कनक वृंदावन में पर्यटक सुबह 8:00 बजे से लेकर शाम को 5:00 बजे तक घूमने जा सकते है और प्रवेश शुल्क 20/- INR निर्धारित किया गया है।
कनक वृन्दावन जयपुर देखने का समय – Kanak Vrindavan Jaipur Timings in Hindi
पर्यटक सुबह 8:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक कनक वृंदावन जा सकते हैं।
कनक वृन्दावन जयपुर में प्रवेश शुल्क – Kanak Vrindavan Jaipur Entry Fee in Hindi
प्रवेश शुल्क INR 20 / – निर्धारित किया गया है।
गोविंददेवजी मंदिर जयपुर – Govinddev Ji Temple Jaipur Tourism in Hindi

जयपुर में स्थित भगवान कृष्ण को समर्पित गोविंददेवजी का मंदिर बिना शिखर का मंदिर है लगभग हजारों की संख्या में देशी और विदेशी श्रद्धालु यहाँ दर्शन करने आते है। जयपुर का एक प्रसिद्ध मंदिर होने के साथ-साथ यह मंदिर पर्यटन के हिसाब से भी बहुत रमणीय स्थल है। जितना ज्यादा प्रसिद्ध यह मंदिर है उससे कहीं ज्यादा प्रसिद्ध इस मंदिर में विराजमान भगवान कृष्ण(गोविंददेवजी) के विग्रह(प्रतिमा) की स्थापना का इतिहास है।
1669 में बाहर से आये हुए मुग़ल आक्रांता औरँगजेब पूरे भारतवर्ष में हिंदू मंदिरों को नष्ट करने का में लगा हुआ था। तब वृंदावन के पुजारियों ने भगवान कृष्ण(गोविंददेवजी) के विग्रह(प्रतिमा) को औरंगजेब के हाथों नष्ट होने से बचाने के लिए किसी अन्य महल में छुपा दिया।
1714 में जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय वृंदावन से भगवान कृष्ण के विग्रह को आमेर लेकर आये और आमेर के पास घाटी में दर्भावती नदी के किनारे स्थापित किया आज इस जगह को कनक वृंदावन के नाम से जाना जाता है। ऐसी