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    द्वारकाधीश मंदिर 2022 | द्वारकापूरी | Dwarkadhish Temple Dwarka In Hindi

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    द्वारकाधीश मंदिर – Dwarkadhish Temple In Hindi

    गुजरात के द्वारका में स्थित द्वारकाधीश मंदिर भगवान विष्णु के 8वें अवतार भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। द्वारकाधीश मंदिर में स्थापित भगवान श्री कृष्ण के विग्रह को “द्वारका के राजा” के रूप में पूजा जाता है। इसके अलावा द्वारकाधीश मंदिर को जगत मंदिर और निज मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। भगवान श्री कृष्ण को समर्पित द्वारकाधीश मंदिर हिन्दू धर्म की सबसे प्रमुख चारधाम यात्रा का हिस्सा है। 

    द्वारकाधीश मंदिर के अलावा बद्रीनाथ मंदिर, पूरी जगन्नाथ मंदिर और रामेश्वरम मंदिर चारधाम यात्रा के तीन अन्य मंदिर है। पुरातात्विक सर्वेक्षण के अनुसार द्वारकाधीश मंदिर लगभग 2300 से 2500 वर्ष पुराना है। लेकिन वहीँ मंदिर की वर्तमान सरंचना 15वीं से 16वीं शताब्दी के आसपास की है। वर्तमान में द्वारकाधीश मंदिर एक भव्य 05 मंजिला इमारत है जो को 72 स्तम्भों के आधार पर खड़ा हुआ है। 

    द्वारकाधीश मंदिर एक पुष्टिमार्ग मंदिर है इस वजह से यहाँ होने वाले यज्ञ और अनुष्ठान वल्लाभाचार्य और विठ्लेसनाथ द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों के आधार पर किये जाते है। द्वारकाधीश मंदिर के निर्माण से पहले यह स्थान भगवान श्री कृष्ण का निवास स्थान माना जाता है जिसे हरि-गृह भी कहा जाता थे। उसके बाद मूल मंदिर का निर्माण भगवान श्री कृष्ण के प्रपौत्र ब्रजनाभ के द्वारा करवाया गया था। 

    इसके अलावा आदि शंकराचार्य ने भी द्वारकाधीश मंदिर की यात्रा की थी, मंदिर परिसर में आदि शंकराचार्य को समर्पित  एक स्मारक बना हुआ है। मंदिर में स्थित स्मारक में आदि शंकराचार्य द्वारा की गई यात्रा का वर्णन विस्तए से किया गया है। इन सब के अलावा द्वारकाधीश मंदिर भगवान विष्णु के 98वें दिव्य देशम है जिसका वर्णन और महिमा मंडन दिव्य प्रभा नाम के पवित्र ग्रन्थ में भी किया गया है। 

    1472 में द्वारकाधीश मंदिर की मूल सरंचना को गुजरात के मुस्लिम शासक महमूद बेगड़ा के द्वारा तोड़ दिया जाता है और इसके बाद 15वीं से लेकर और 16वीं शताब्दी के बीच में राजा जगत सिंह राठौर के द्वारा दोबारा द्वारकाधीश मंदिर का निर्माण करवाया गया। 

    द्वारकाधीश मंदिर की पौराणिक कथा – Mythology of Dwarkadhish Temple In Hindi


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    Rukmani Temple Dwarka | Click on image for Credits

    गुजरात में अरब सागर के तट पर बसी हुई द्वारका नगरी का निर्माण भगवान श्री कृष्ण ने करवाया था। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर नगर बसाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने जमीन का टुकड़ा समुद्र से प्राप्त किया था। अब एक पौराणिक घटनाक्रम है जो कि भगवान श्री कृष्ण और उनकी पत्नी रुक्मिणी से जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार दुर्वासा ऋषि का द्वारका नगरी आना हुआ। 

    जब भगवान श्री कृष्ण और उनकी पत्नी रुक्मिणी को दुर्वासा ऋषि के द्वारका आने की सूचना मिलती है तो वह दोनों दुर्वासा ऋषि का स्वागत करने के लिये नगर के द्वार तक जाते है। दुर्वासा ऋषि का द्वारका के नगर द्वार पर स्वागत के करने के बाद भगवान श्री कृष्ण और देवी रुक्मिणी उनको महल में लेकर जाने के लिये रवाना होते है। 

    नगर द्वार महल से कुछ दूरी पर स्थित होता है इस वजह से देवी रुक्मिणी देवी थक जाती है और एक स्थान पर बैठ कर भगवान श्री कृष्ण से पीने का पानी मांगती है। भगवान श्री कृष्ण उसी समय उस स्थान पर छेद कर देते है और उस छेद में  गंगा नदी का पानी बहने लगता है। लेकिन इधर यह सब देखकर दुर्वासा ऋषि को बड़ा गुस्सा आता है, और अपने इसी गुस्से में वह देवी रुक्मिणी को शाप दे देते है कि वह जिस जगह पर बैठी है सैदेव उसी स्थान पर रहेगी। 

    वर्तमान में द्वारका में जिस स्थान पर रुक्मिणी मंदिर जिस स्थान पर बना हुआ है कहा जाता है कि यह वही स्थान है जहाँ दुर्वासा ऋषि ने देवी रुक्मिणी को शाप दिया था।

    द्वारका का इतिहास – History of Dwarka in Hindi


    dwarka
    Dwarka Nagri | Click on image for credits

    वर्तमान में द्वारका गौमती नदी व अरब सागर के पास में स्थित भारत के गुजरात राज्य का एक तटीय शहर होने के साथ-साथ एक जिला मुख्यालय भी है। इसके अलावा द्वारका भारत के सात सबसे प्राचीन शहर (सप्तपुरी) में से एक है इस वजह से इस पवित्र प्राचीन शहर को द्वारकापुरी भी कहा जाता है। इस शहर का सीधा सम्बन्ध द्वापर युग से जुड़ा हुआ है। 

    द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने गुजरात के पास में स्थित इस स्थान पर अपने साम्राज्य की स्थापना की और द्वारका नाम के शहर को बसा कर अपने साम्राज्य की राजधानी बनाया। वर्तमान में द्वारका में स्थित द्वारकाधीश मंदिर हिन्दू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है इसके अलावा यह मंदिर हिन्दू धर्म की सबसे प्रमुख धार्मिक चारधाम यात्रा का हिस्सा भी है। 

    एक महत्वपूर्ण धार्मिक तीर्थ स्थल होने के साथ-साथ द्वारका से बहुत से रहस्य भी जुड़े हुए जिनेक बारे में अभी तक वैज्ञानिकों को बहुत अधिक जानकारी प्राप्त नहीं हुई है। कुछ ऐसे रिसर्च सामने आये है जिनके अनुसार यह माना जाता है की मूल द्वारका नगर समुद्र में डूब गया है। सबसे पहले वर्ष 1963 में इस शहर के ऐस्कवेशन का कार्य डेक्कन कॉलेज पुणे, डिपार्टमेंट ऑफ़ आर्कियोलॉजी और गुजरात सरकार ने मिलकर किया था। 

    इस ऐस्कवेशन के दौरान खोजकर्ताओं को लगभग 3000 साल पुराने बर्तन मिले थे। इस खोज के लगभग एक दशक के बाद आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया अपनी अंडर वॉटर आर्कियोलॉजी विंग को द्वारका के पास में स्थित अरब सागर से कुछ तांबे के सिक्के और और ग्रेनाइट स्ट्रक्चर मिलते है। 

    इसके एक लम्बे अंतराल के बाद वर्ष 2005 में द्वारका के छिपे हुए रहस्यों से पर्दा हटाने का कार्य एक बार फिर से शुरू कर दिया जाता है। इस बार इस खोज में भारतीय नौसेना भी शामिल होती है। अरब सागर में चलाये गए इस खोज अभियान में खोजकर्ता समुद्र की गहराई से कई कटे-छटे पत्थर के लगभग 200 नमूने इकट्ठा करते है। 

    आज तक वैज्ञानिक यह तय नहीं कर पाए है मूल द्वारका नगरी कौनसी है जिसे भगवान श्री कृष्ण के द्वारा बसाया गया था। आज भी वैज्ञानिक और खोजकर्ता समुद्र की गहराईयों में कैद द्वारका नगरी से जुड़े हुए रहस्यों को सुलझाने के लिए समय-समय पर प्रयास करते रहते है। भगवान श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ और बचपन वृन्दावन में बिता लेकिन उन्होंने अपने राज्य की स्थापना इन दोनों जगहों से हजारों किलोमीटर दूर द्वारका में की है। 

    द्वारका में शासन करते हुए भगवान श्री कृष्ण ने पुरे देश में धर्म की स्थापना की। इसलिए आज भी हमारे हिन्दू धर्म में भगवान श्री कृष्ण जन्मस्थली और कर्मस्थली समान रूप से पूजनीय है। और वहीँ जब आस्था का सवाल आता है तो उसके अनुसार असली द्वारका नगरी  भगवान श्री कृष्ण की मृत्यु के साथ ही समुद्र में डूब गई थी। 

    इसके अलावा यह भी माना जाता है की भगवान श्री कृष्ण को यह बहुत पहले पता चल गया था की द्वारका समुद्र में डूबने वाली है इसलिए उन्होंने बहुत समय पहले पूरी द्वारका नगरी को खाली करवा लिया था ताकि किसी प्रकार की जन-हानि ना हो।  

    द्वारकाधीश मंदिर का स्थापत्य – Architecture of Dwarkadhish Temple in Hindi


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    Dwarkadhish Temple Dwarka | Click on image for credits

    भगवान श्री कृष्ण की नगरी द्वारका में स्थित द्वारकाधीश मंदिर चालुक्य शैली में निर्मित एक भव्य पांच मंजिला ईमारत है। मंदिर के निर्माण में चुना पत्थर का उपयोग किया गया है। द्वारकाधीश मंदिर की पांच मंजिला ईमारत 72 स्तम्भों के आधार पर खड़ी हुई है। इसके अलावा मंदिर का मुख्य शिखर 78.3 मीटर (257 फ़ीट ) ऊँचा है। मंदिर के शिखर पर 52 कपडे से निर्मित ध्वज भी लगाया हुआ है जिसे प्रतिदिन 05 बार बदला जाता है। 

    मंदिर के शिखर पर स्थापित ध्वज पर सूर्य और चन्द्रमा अंकित किये गए है जो की भगवान श्री कृष्ण के शासन का दर्शाते है। इसके अलावा ध्वज यह भी दर्शाता है की जब तक इस पृथ्वी पर सूर्य और चन्द्रमा रहेंगे तब तक यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण का शासन रहेगा।इसी वजह से द्वारकाधीश मंदिर को जगत मंदिर भी कहा जाता है। 

    द्वारकाधीश मंदिर की दीवारों पर समय-समय पर यहाँ राज करने वाले राजाओं और उनके उत्तराधिकारियों ने बेहद महीन कारीगरी करवाई है। मंदिर में दो प्रवेश द्वार बने हुए है, उत्तर दिशा में स्थित प्रवेश द्वार को “मोक्ष द्वार” कहा जाता है और दक्षिण दिशा में स्थित प्रवेश द्वार को “स्वर्ग द्वार” कहा जाता है। स्वर्ग द्वार के बाहर कुल 56 सीढियाँ बनी हुई है जो की गोमती नदी के तट तक जाती है।   

    द्वारकाधीश मंदिर के प्रमुख त्यौहार – Dwarkadhish Temple Festival In Hindi

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    Arabian Sea Dwarka

    वैसे तो द्वारकाधीश मंदिर में भगवान श्री कृष्ण से जुड़े हुए सभी त्यौहार बड़े उत्साह के साथ मनाये जाते है। लेकिन कृष्ण जन्माष्टमी, और गोकुलाष्टमी जैसे त्यौहार इस मंदिर में मनाये जाने वाले प्रमुख त्यौहार है। इन त्यौहार के समय यहाँ पर बहुत ज्यादा संख्या में श्रद्धालु भगवान श्री कृष्ण के दर्शन करने के लिए द्वारका आते है। 

    इन त्योहारों के अलावा जिस प्रकार कुरुक्षेत्र में 48 कोस परिक्रमा और मथुरा और ब्रज में 84 कोस परिक्रमा की जाती है, उसी प्रकार यहाँ पर द्वारका परिक्रमा की जाती है इसे यहाँ पर द्वारकाधीश परिक्रमा भी कहा जाता है। यहाँ पर एक शारदा पीठ भी है जिसकी स्थापना आदि शंकराचार्य के द्वारा की गई है।  शारदा पीठ आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित 04 शक्ति पीठ में से एक है।  

    द्वारकाधीश मंदिर में दर्शन का समय – Dwarkadhish Temple Timings In Hindi

    द्वारकाधीश मंदिर श्रद्धालुओं के लिए सुबह 06:00  बजे से लेकर दोपहर के 01.00 बजे तक और शाम को 5.00 बजे से लेकर रात 9.30 बजे तक दर्शन के लिए खुला रहता है। 

    द्वारकाधीश मंदिर में प्रवेश शुल्क – Dwarkadhish Temple Entry Fee In Hindi

    द्वारकाधीश मंदिर में श्रद्धालुओं के द्वारा किसी भी प्रकार का प्रवेश शुल्क नहीं लिया जाता है। 

    द्वारकाधीश मंदिर में आरती का समय – Dwarkadhish Temple Aarti Timings In Hindi

    सुबह होने वाली आरतियाँ भोग और श्रृंगार

    मंगला आरती प्रातः  06:30
    मंगला दर्शन प्रातः 07:00 से प्रातः 08:00
    अभिषेक प्रातः 08:00 से प्रातः 09:00
    श्रृंगार दर्शन प्रातः 09:00 से प्रातः 09:30
    स्ननभोग प्रातः 09:30 से प्रातः 09:45
    श्रृंगार दर्शन प्रातः 09:45 से प्रातः 10:15
    श्रृंगारभोग  प्रातः 10:15 से प्रातः 10:30
    श्रृंगार आरती प्रातः 10:30 से प्रातः 10:45
    ग्वाल भोग प्रातः 11:00 से प्रातः11:20
    दर्शन प्रातः 11:20 से दोपहर 12:00
    राजभोग दोपहर 12:00 से दोपहर 12:20
    दर्शन बंद दोपहर 01:00

    सुबह होने वाली आरतियाँ भोग और श्रृंगार

    उथप्पन प्रथम दर्शन सायं 05:00 बजे
    उथप्पन भोग सायं 05:30 से सायं 05.45
    दर्शन सायं 05:45 से सायं 07:15
    संध्या भोग सायं 07:15 से सायं 07:30
    संध्या आरती सायं 07:30 से सायं 07:45
    शयनभोग रात्रि 08:00 से रात्रि 08:10
    दर्शन रात्रि 08:10 से  रात्रि 08:30
    शयन आरती रात्रि 08:30 से रात्रि 08:35
    दर्शन रात्रि 08:35 से रात्रि 09:00
    बंटभोग और शयन रात्रि 09:00 से रात्रि 09:20
    मंदिर बंद रात्रि 09:30 बजे

    नोट :- द्वारकाधीश मंदिर में आरती के समय मे बदलाव संभव है।

    द्वारका में कहाँ रुके – Hotels in Dwarka in Hindi

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    Hotels in Dwarka | Ref img

    एक प्रसिद्ध धार्मिक तीर्थ स्थल होने की वजह से द्वारा में बहुत सारी धर्मार्थ धर्मशालाएं बनी हुई है। जहां पर आप बहुत कम शुल्क देकर बड़ी आसानी से रुक सकते है। इसके अलावा यहाँ पर बहुत सारे होटल भी बने हुए है। बहुत सारी ऑनलाइन होटल बुकिंग वेबसाइट द्वारका में ऑनलाईन होटल रूम बुकिंग की सुविधा उपलब्ध करवाती है।

    द्वारका जाने का सबसे अच्छा समय – Best time to visit in Dwarka in Hindi

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    Lighthouse Dwarka | Ref img

    वैसे तो आप पूरे साल कभी भी द्वारकाधीश मंदिर के दर्शन करने के लिए जा सकते है। लेकिन मौसम के हिसाब से नवंबर से लेकर फरवरी महीने तक का समय द्वारकाधीश मंदिर के दर्शन का समय सबसे अच्छा माना जाता है। कृष्ण जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण से जुड़ा हुआ सबसे बड़ा त्यौहार है। इस त्योंहार के समय देश-दुनिया के सबसे ज्यादा श्रद्धालु भगवान श्री कृष्ण के दर्शन करने के लिये द्वारका नगरी आते है। साल के इस समय पूरी द्वारका नगरी में सजावट की जाती है जिससे इस शहर की खूबसूरती और भी ज्यादा बढ़ जाती है। अगर मौका मिलता है तो आपनो कृष्ण जन्माष्टमी के समय द्वारका जरूर आना चाहिए।

    द्वारका कैसे पहुँचे – How to reach Dwarak in Hindi

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    How to reach Dwarka | Ref img

    हवाई मार्ग से द्वारका कैसे पहुँचे – How to reach Dwarka by Air in Hindi

    द्वारका के सबसे निकटतम हवाई अड्डा जामनगर हवाई अड्डा है। जामनगर हवाई अड्डे से द्वारका की दूरी मात्र 132 किलोमीटर है। जामनगर हवाई अड्डा देश के प्रमुख हवाई अड्डों से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा है। 3

    इसके अलावा अहमदाबाद हवाई अड्डे से भी आप द्वारका पहुँच सकते है। जामनगर से द्वारका के लिए नियमित रूप से सरकारी और निजी बस सेवा उपलब्ध रहती है। इसके अलावा आप कैब और टैक्सी की सहायता से द्वारका बड़ी आसानी से पहुँच सकते है।

    रेल मार्ग से द्वारका कैसे पहुँचे – How to reach Dwarka by Train in Hindi

    द्वारका रेलवे स्टेशन देश के सभी प्रमुख रेलवे स्टेशन से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। देश के लगभग सभी प्रमुख शहरों से द्वारका के लिये आपको नियमित रेल सेवा उपलब्ध मिल जाएगी।

    सड़क मार्ग से द्वारका कैसे पहुँचे – How to reach Dwarka by Road in Hindi

    गुजरात के लगभग सभी प्रमुख शहरों से आपको द्वारका के लिये नियमित रूप से बस सेवा उपलब्ध मिल जाएगी। इसके अलावा आप कैब और टैक्सी की सहायता से भी बड़ी आसानी से द्वारका पहुँच सकते है। आप अपने निजी वाहन की सहायता से द्वारका बड़ी आसानी से पहुँच सकते है।

    (अगर आप मेरे इस आर्टिकल में यहाँ तक पहुंच गए है तो आप से एक छोटा से निवदेन है की नीचे कमेंट बॉक्स में इस लेख से संबंधित आपके सुझाव जरूर साझा करें, और अगर आप को कोई कमी दिखे या कोई गलत जानकारी लगे तो भी जरूर बताए।  में यात्रा से संबंधित जानकारी मेरी इस वेबसाइट पर पोस्ट करता रहता हूँ, अगर मेरे द्वारा दी गई जानकारी आप को पसंद आ रही है तो आप अपने ईमेल से मेरी वेबसाइट को सब्सक्राइब जरूर करे, धन्यवाद )

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