रामेश्वरम | रामेश्वरम मंदिर 2024 | Rameswaram Mandir 2024 in Hindi | Rameswaram Mandir Travel Guide 2024 in Hindi | Rameswaram Temple History in Hindi | History | Aarti Timings | Entry Timings | Rameswaram Temple In Hindi

रामेश्वरम / रामनाथपुरम – Rameswaram / Ramanathapuram

रामेश्वरम मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक और हमारे देश की सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक यात्रा मानी जाने वाली चारधाम यात्रा का महत्वपूर्ण हिस्सा है। वास्तव में यह मंदिर तमिलनाडु के रामनाथपुरम नाम के एक शहर में स्थित है।  लेकिन इस मंदिर की प्रसिद्धि इतनी ज्यादा है की लगभग सभी लोग रामनाथपुरम को रामेश्वरम के नाम से ही जानते है ।

रामनाथपुरम नाम के शहर में स्थित रामेश्वरम मंदिर की धार्मिक मान्यता इतनी ज्यादा है की पुरे भारत से प्रतिवर्ष करोड़ो श्रद्धालु इस मंदिर में भगवान शिव के दर्शन करने के लिए आते है। रामेश्वरम मंदिर के बारे में बात करने से पहले हम थोड़ा रामनाथपुरम के बारे में बात कर लेते है। रामनाथपुरम तमिलनाडु के राजधानी चेन्नई से लगभग 560 किलोमीटर की  दुरी पर स्थित है एक प्राचीन शहर है।

मुख्य रूप से यह शहर हिन्द महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों तरफ से घिरा हुआ है शंख के आकार का बेहद सुन्दर द्वीप है जिसे पाम्बन द्वीप और रामेश्वरम द्वीप के नाम से भी जाना जाता है ।

रामनाथपुरम एक द्वीप बनने से पहले एक या दो शताब्दी पूर्व या उससे भी ज्यादा समय पहले भारत से भूमि मार्ग से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ था लेकिन कुछ प्राकृतिक कारणों से यहाँ पर समुद्र का जल स्तर बढ़ गया और यह शहर चारों तरफ से समुद्र से घिर गया और भारत से रामनाथपुरम का भूमि द्वारा सीधा संपर्क कट गया।

वर्तमान में रामनाथपुरम जिस द्वीप पर मुख्य भूमि से जुड़ा हुआ है वहां इस समय 2 लगभग  किलोमीटर लम्बी खाड़ी बनी हुई है। शुरुआत में जब तीर्थ यात्री रामनाथपुरम में स्थित रामेश्वरम मंदिर में दर्शन करने ले लिए जाते थे तब वह लोग इस खाड़ी को पार करने के लिए नावों का उपयोग किया करते थे।

कुछ समय के  बाद यहाँ के तत्कालीन शासक कृष्णप्पनायकन ने तीर्थ यात्रियों के लिए एक पत्थरों से निर्मित एक बहुत बड़े पुल का निर्माण भी करवाया था। हालाँकि राजा कृष्णप्पनायकन के द्वारा निर्मित पत्थर का पुल बहुत समय तक नहीं टिक पाया था।  बाद में जब भारत में अंग्रेजों ने आधिपत्य कर लिया था तो उनको कुछ समय के बाद रामनाथपुरम को रेल मार्ग से जोड़ने का विचार आया ताकि उनको इस स्थान से आर्थिक लाभ प्राप्त हो सके।

रामनाथपुरम को रेल मार्ग से जोड़ने के लिए अंग्रेज अधिकारीयों ने पुल निर्माण के लिए एक जर्मन इंजीनियर को नियुक्त किया। वर्ष 1911 में लगभग 2.5 किलोमीटर लम्बे रेल पुल का निर्माण शुरू हुआ और 24 फरवरी 1914 को यह रेल पुल पूरी तरह से बन कर तैयार हो गया। निर्माण पूरा होने के बाद इस रेल पुल को पाम्बन रेलवे पुल के नाम से जाना गया ।

पाम्बन रेलवे पुल का जब निर्माण किया जा रहा था तब इस बात का विशेष ध्यान रखा गया था की छोटे जहाज इस रेल पुल को पार कर सके। इसलिए इस पुल का बीच में से हिस्सा ऊपर हो जाता है ताकि छोटे जहाज इसको आसानी से पार कर सके।

इसके बाद वर्ष 1988 में तत्कालीन भारतीय सरकार ने पाम्बन रेलवे पुल के समांतर एक सड़क पुल भी बनाया गया जिसे राष्ट्रीय राजमार्ग 87 से जोड़ा गया।  वर्ष 2021 के अंत तक नए पाम्बन रेलवे पुल का निर्माण कार्य भी पूरा हो जाएगा।

रामेश्वरम मंदिर का इतिहास – Rameswaram Temple History in Hindi


Ramnathswamy Temple – Rameswaram | Click on image for credits

रामेश्वरम मंदिर का मूल नाम रामनाथस्वामी मंदिर है, वैसे तो मंदिर में  पर स्थापित भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग का इतिहास त्रेतायुग  से जुड़ा हुआ है। लेकिन मुख्य मंदिर का निर्माण मात्र 800 वर्ष ही पुराना है जबकि इसके विपरीत दक्षिण भारत के कई मंदिर 1000 वर्ष से लेकर 1500 वर्ष तक पुराने है। लेकिन इसके बावजूद इस की मंदिर स्थापत्य कला दक्षिण भारत के कई मंदिरों से एकदम अलग है।

मंदिर परिसर में स्थित विशालाक्षी जी के गर्भगृह के पास भगवान शिव के 09 ज्योतिर्लिंग स्थापित है जिनके लिए कहा जाता है की इनकी स्थापना लंकापति विभीषण के द्वारा की गई थी। रामनाथस्वामी में सुरक्षित रखे गए एक ताम्रपट को पढ़कर यह स्पष्ट हो जाता है की 1173 ईस्वी में श्रीलंका के तत्कालीन राजा पराक्रम बहु ने भगवान शिव के मूल शिवलिंग वाले गर्भगृह का निर्माण करवाया था।

राजा पराक्रम बाहु द्वारा निर्मित  गर्भगृह में सिर्फ भगवान शिव का शिवलिंग ही विराजमान है, इसके अलावा आपको गर्भगृह में किसी अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ देखने को नहीं मिलेगी। इसी वजह से राजा पराक्रम बहु द्वारा निर्मित गर्भग्रह उस समय नि:संगेश्वर मंदिर कहलाया। और इसी नि:संगेश्वर को वर्तमान में हम सभी रामेश्वरम मंदिर या फिर रामनाथस्वामी मंदिर के नाम से जानते है।

आगे चलकर 15वीं शताब्दी में तत्कालीन राजा उडैयान सेतुपति और पास के ही नागुर निवासी वैश्य दोनों ने मिलकर 1450 ईस्वी में नि:संगेश्वर मंदिर में 78 फ़ीट ऊँचे गोपुरम का निर्माण करवाया।बाद में मदुरई के एक देवी-भक्त ने भी मंदिर में  जीर्णोद्वार का कार्य करवाया था। 16वीं शताब्दी में मंदिर के दक्षिणी भाग में स्थित दूसरे परकोटे का निर्माण तत्कालीन राजा तिरुमलय सेतुपति के द्वारा करवाया गया।

दक्षिणी  भाग के परकोटे के प्रवेश द्वार बनी हुई मूर्तियाँ राजा तिरुमलय सेतुपति के पुत्र और पुत्री की ही है। 16वीं शताब्दी में ही मदुरई के राजा विश्वनाथ नायक और उनके के अधीनस्थ शासक उडैयन सेतुपति कट्टत्तेश्वर में रामेश्वरम मंदिर में नंदी मंडप और कुछ अन्य निर्माण कार्य भी करवाए थे। मंदिर में स्थित स्थित नंदी मंडप 22 फ़ीट लम्बा, 12 फ़ीट चौड़ा  और 17 फ़ीट ऊँचा है।

रामनाथस्वामी मंदिर के पास में स्थित सेतुमाधव मंदिर का निर्माण 500 वर्ष पूर्व रामनाथपुरम के तत्कालीन राजा और एक धनी वैश्य ने मिलकर करवाया था। 17वीं शताब्दी आते-आते दलवाय सेतुपति नाम के राजा ने पूर्वी भाग के गोपुरम का निर्माण कार्य शुरू करवाया। इसके अलावा 18वीं शताब्दी में रविविजय सेतुपति ने मंदिर में अन्य देवी-देवताओं के लिए शयन-गृह और मंडप का निर्माण करवाया।

और इसके कुछ समय बाद मुत्तु रामलिंग सेतुपति ने मंदिर के बाहरी परकोटे को बनवाया था।  1897 ईस्वीं से लेकर 1904 ईस्वी के बीच के समय में देवकोट्टई  के संपन्न परिवार ने 126 फ़ीट ऊँचे 09 द्वार वाले पूर्वी गोपुरम का निर्माण करवाया। आगे चलकर इसी परिवार के सदस्यों ने 1907 ईस्वीं से लेकर 1925 ईस्वी के मध्य भाग में मंदिर के मुख्य गर्भगृह के मरम्मत का कार्य भी करवाया।

इसके अलावा देवकोट्टई के इसी परिवार के सदस्यों ने वर्ष 1947 में रामनाथस्वामी मंदिर में महाकुम्भाभिषेक भी करवाया था। इस प्रकार 10वीं शताब्दी से शुरू हुआ  रामनाथस्वामी मंदिर या रामेश्वरम मंदिर का निर्माण कार्य अनेक राजाओ और अनेक वैश्य परिवार के लोगों के सहयोग से  20वीं शताब्दी में पूरा हुआ।

रामेश्वरम मंदिर का स्थापत्य – Rameswaram Temple Architecture in Hindi


Rameswaram Temple Corridor | Click on image for credits

दक्षिण भारत की द्रविड़ वास्तुशैली में निर्मित रामेश्वरम मंदिर लगभग 06 हेक्टेयर में बना हुआ है, और जो बात इस मंदिर को दक्षिण भारत के अन्य मंदिरों से अलग करती है वो है इस मंदिर के विशाल गलियारे  जिनकी  कुल लम्बाई लगभग 1220 मीटर है । रामेश्वरम मंदिर का गलियारा विश्व का सबसे लम्बा गलियारा है।

उत्तर से दक्षिण दिशा में बने हुए गलियारे की लम्बाई 197 मीटर है और वहीँ पर पूर्व से पश्चिम दिशा में बने हुए गलियारे की लम्बाई 133 मीटर है। इसके अलावा मंदिर के परकोटे की चौड़ाई 06 मीटर है और ऊंचाई 09 मीटर है। मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार का गोपुरम 38.4 मीटर है। एक बेहद विशाल मंदिर होने के बावजूद भी रामेश्वरम मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण माना जाता है।

मंदिर की चारदीवारी और मंदिर परिसर में सैंकड़ो विशाल खम्भे बने हुए जो को की देखने में एकदम एक जैसे प्रतीत होते है। लेकिन जब आप इन खम्बों को नजदीक से देखते है तो आपको पता चलेगा की प्रत्येक खंभे पर अलग तरीके से महीन कारीगरी की गई है। रामेश्वरम मंदिर भगवान शिव को समर्पित है जिनको यहाँ पर रामनाथस्वामी के नाम से पुकारा जाता है।

मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव के 02 शिवलिंग स्थापित किये गए है। दोनों शिवलिंग में से एक का निर्माण भगवान राम रेत से किया था जिसे रामलिंगम कहा जाता है, और दूसरी शिवलिंग हनुमान कैलाश पर्वत से लेकर आये थे इसे विश्वलिंगम कह कर पुकारा जाता है।  गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग में हनुमान जी द्वारा लाये गए शिवलिंग जिसे विश्वलिंगम के नाम से जाना जाता है की सबसे पहले पूजा की जाती है।

दक्षिण भारत के अन्य मंदिरो की तरह रामेश्वरम मंदिर के चारों तरफ ऊँची-ऊँची चारदीवारी बनी हुई है। जिनमे प्रवेश करने के लिए विशाल गोपुरम बने हुए है इसके अलावा मंदिर की मुख्य इमारत जिसे राजगोपुरम भी कहा जाता है जिसकी ऊंचाई लगभग 53 मीटर है। मंदिर में बने हुए अधिकांश खम्भों पर देवी-देवताओं की मूर्तियाँ उक्केरी हुई है।

मंदिर की वर्तमान सरंचना को बनने में बहुत लम्बा समय लगा है जिसे कई व्यक्तियों के सहयोग से पूरा किया गया है। मंदिर की स्थापना का अधिकतम श्रेय रामनाथपुरम के सेतुपति को कहा जाता है। 17वीं शताब्दी में मुख्य पूर्वी गोपुरम के एक हिस्से का निर्माण दलवई सेतुपति ने करवाया था। बाद में 18वीं शताब्दी में मंदिर के सबसे प्रसिद्ध तीसरे गलियारे का निर्माण मुथुरामलिंगा सेतुपति के द्वारा करवाया गया।

तीसरे गलियारे को “चोक्कटन मंडपम” कहा जाता है, गलियारे के पश्चिमी प्रवेश द्वार पर सेतुपति के दो मंत्रियों की मूर्तियाँ स्थापित की गई है। मंदिर परिसर में रामनाथस्वामी और उनकी पत्नी पार्वथवर्धिनी के लिए अलग-अलग मंदिर बने हुए है। इसके अलावा देवी विशालाक्षी देवी, भगवान विष्णु और गणेश जी के लिए भी अलग-अलग मंदिर बने हुए है।

मंदिर परिसर में विभिन्न प्रकार के हॉल भी बने हुए है जिन्हे सेतुपति मंडपम, नंदी मंडपम, सुकरवर मंडपम, कल्याण मंडपम और अनुप्पू मंडपम के नाम से जाना जाता है। रामनाथपुरम द्वीप में कुल 64 कुंड बने हुए है जिन्हे यहाँ पर तीर्थ भी कहा जाता है। स्कन्द पुराण के अनुसार द्वीप पर स्थित 64 कुंड में से 24 कुंड ज्यादा महत्वपूर्ण है। 24 कुंड में से 22 कुंड रामेश्वरम मंदिर परिसर में स्थित है जिनमें स्नान करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

मंदिर परिसर में स्थित 22 कुंड भगवान राम के 22 तीरों की तरफ इशारा करते है। रामेश्वरम मंदिर भारत के उन गिने चुने मंदिरों में से एक है जिन्हें प्रमुख तीर्थ स्थल होने का गौरव प्राप्त है। मंदिर से जुडी एक पौराणिक कथा के अनुसार मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव के दर्शन करने से पहले मंदिर परिसर में स्थित 22 कुंड स्नान करना चाहिए।

इसके अलावा एक मान्यता यह भी है मंदिर में स्थापित भगवान शिव के शिवलिंग पर हनुमान जी की पूंछ के निशान भी दिखाई देता है।

रामेश्वरम मंदिर की पौराणिक कथा – Mythology of Rameswaram Temple in Hindi


Sita Ram | Click on image for credits

रामेश्वरम मंदिर और रामनाथपुरम का सीधा सम्बन्ध त्रेता युग से जुड़ा हुआ है। रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग से जुड़े हुए दो घटनाक्रम बहुत ज्यादा सुने जाते है :-

01 – त्रेता युग में रावण जब माता सीता का अपहरण करके लंका चला जाता है,  तब प्रभु श्री राम माता सीता को ढूंढते-ढूंढते गंधमादन पर्वत के पास स्थित इस स्थान पर पहुँचते है जिसे आगे चल कर रामनाथपुरम (रामेश्वरम ) के नाम से जाना गया।

अब आगे का घटनाक्रम कुछ इस प्रकार है, जब प्रभु श्री राम रावण को ढूंढते हुए इस स्थान पर पहुँचते है तो उन्हें यह पता चलता है की इस स्थान से आगे सागर को पार करके लंका नाम की जगह पर रावण माता सीता का अपहरण करके ले गया। इसलिए प्रभु श्री राम लंका तक जाने के लिए सेतु का निर्माण करवाते है ताकि वह लंका तक पहुँच सके और माता सीता को रावण से मुक्त करवा सके।

सेतु निर्माण के बाद जब प्रभु श्री राम जब रावण से युद्ध करने के लिए रवाना हो रहे थे तब उन्होंने ने इस स्थान पर एक प्राकृतिक शिवलिंग का निर्माण किया और भगवान शिव की पूजा अर्चना की ताकि उन्हें रावण से युद्ध में विजय प्राप्त हो और वह माता सीता को रावण की कैद से मुक्त करवा सके।

प्रभु श्री राम जब यहाँ पर भगवान शिव की पूजा शुरू कर रहे थे, तब भगवान शिव यहाँ स्वयं प्रकट हुए और एक ज्योतिर्लिंग के रूप स्थापित हुए और इस जगह जो रामेश्वरम की उपमा प्रदान की। उसके बाद जब प्रभु श्री राम युद्ध में विजय होने के पश्चात और ब्रह्मा-हत्या के पाप का प्रायश्चित करने के लिए हनुमान जी को शिवलिंग लाने के लिए कहते है। प्रभु श्री राम के आदेशनुसार हनुमान जी कैलाश से शिवलिंग लेकर आते है और रामेश्वरम में स्थापित करते है।

इसके बाद प्रभु श्री राम माता सीता के साथ भगवान शिव के मिटटी से बने हुए शिवलिंग और हनुमान जी के द्वारा  लाये गए शिवलिंग की साथ में पूजा करते है। आज भी रामेश्वरम मंदिर में प्रभु श्री राम और माता सीता द्वारा स्थापित शिवलिंग और हनुमान जी द्वारा लाये गए शिवलिंग दोनों की ही पूजा की जाती है।

02 – इसके बाद प्रभु श्री राम लंका पहुँच कर रावण को युद्ध में पराजित करके है और माता सीता को मुक्त करवा कर वापस रामेश्वरम आते है। लंका में रावण के साथ हुए युद्ध में रावण के साथ उसका पूरा वंश समाप्त हो गया था। प्रभु श्री राम को यह पता था की रावण कोई सामान्य राक्षक नहीं था बल्कि महर्षि पुलस्त्य का वंशज था और ऋषि विश्वश्रवा का पुत्र था।

एक ऋषि पुत्र होने के साथ-साथ रावण बहुत बड़ा ज्ञानी भी था और साथ में भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त भी था। एक ऋषि पुत्र और भगवान शिव का भक्त होने की वजह से प्रभु श्री राम को रावण की मृत्यु का बहुत दुःख हुआ साथ में ही उनको  ब्रह्मा-हत्या का प्रायश्चित भी करना था। इसलिए रामेश्वरम पहुंच कर प्रभु श्री राम ने माता सीता के साथ ब्रह्मा-हत्या के पाप का  प्रायश्चित करने के लिए भगवान शिव की पूजा की।

इस बार भगवान शिव की पूजा करने के लिए प्रभु श्री राम ने हनुमान जी भगवान शिव का शिवलिंग लाने के लिए कहा।  प्रभु श्री राम के आदेश के अनुसार हनुमान जी भगवान शिव का शिवलिंग लाने के लिए कैलाश चले गए। लेकिन हनुमान जी को शिवलिंग लाने में थोड़ा सा विलम्ब हो गया और इधर रामेश्वरम में भगवान शिव की पूजा करने में देरी हो रही थी इस वजह से माता सीता ने अपने हाथों से रामेश्वरम में मिट्टी से शिवलिंग का निर्माण किया।

उसके बाद प्रभु श्री राम और माता सीता ने शुभ महूर्त के हिसाब से शिवलिंग की पूजा शुरू कर दी, इसके थोड़ी देर बाद ही हनुमान जी भी कैलाश से शिवलिंग लेकर आ गए। लेकिन यहाँ पर पहले से मिटटी के शिवलिंग पूजा होते देख कर हनुमान जी बड़ा दुखी होते है।  हनुमान जी को दुःखी देखर प्रभु श्री राम मिटटी के शिवलिंग के पास ही हनुमान जी द्वारा लाये गए शिवलिंग की भी स्थापना करते है और उसे विश्वलिङ्गा का नाम देते है।

आज भी रामेश्वरम मंदिर में सबसे पहले हनुमान जी के द्वारा लाये गए शिवलिंग की पूजा पहले होती है और उसके बाद भगवान राम और माता सीता द्वारा स्थापित शिवलिंग की पूजा की जाती है।

रामेश्वरम मंदिर के रोचक तथ्य – Interesting Facts of Rameswaram Temple In Hindi


Pamban Bridge – Rameswaram | Click on image for credits

01 रामेश्वरम मंदिर की लम्बाई 1000 फुट और चौड़ाई 650 फुट है।

02 मंदिर का निर्माण दो 40 फुट ऊँचे पत्थर और एक इतने ही लम्बे पत्थर को लगा कर किया गया है।

03 मान्यता है की मंदिर निर्माण के लिए श्रीलंका से नावों से पत्थर लाये गए थे।

04 रामेश्वरम मंदिर का गलियारा विश्व में किसी भी मंदिर का सबसे लम्बा गलियारा है। मंदिर के गलियारे की कुल लम्बाई लगभग 4000 फुट है।

05 मान्यता है की मंदिर परिसर में निर्मित कुंड का निर्माण प्रभु श्री राम के बाणों से हुआ है।

06 ऐसा माना जाता है की मंदिर में शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

07 रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की पुरे विधि-विधान से पूजा करने पर मोक्ष प्राप्ति है ऐसा माना जाता है।

रामेश्वरम मंदिर में प्रवेश का समय – Rameswaram Temple Entry Timing in Hindi

रामेश्वरम मंदिर श्रद्धालुओं के लिए सुबह 05:00 से लेकर दोपहर के 12:00 बजे तक खुला रहता है और शाम को 06:00 बजे से लेकर रात के 08:45 बजे तक खुला रहता है।

नोट :- मंदिर में प्रवेश के समय में बदलाव संभव है इसलिए जब भी मंदिर में दर्शन करने के लिए जाएँ तब एक बार मंदिर में प्रवेश के समय के बारे में जरूर पता कर लेवें।  

रामेश्वरम मंदिर में आरती का समय – Rameswaram Temple Aarti Timing in Hindi

आरती का नाम  आरती का समय 
पल्लियाराय दीपा आराधना 05:00 सुबह
स्पादिगालिंग दीपा आराधना 05:10 सुबह
तिरुवनंतल दीपा आराधना 05 :45 सुबह
विला पूजा 07 :00 सुबह
कलासंथी पूजा 10:00 सुबह
उचिकाला पूजा 12:00 दोपहर
सायरात्चा पूजा 06:00 शाम
अर्थजमा पूजा 08:30 रात्रि
पल्लियाराय पूजा 08:45 रात्रि

रामेश्वरम मंदिर के प्रमुख फेस्टिवल – Rameswaram Temple Festival In Hindi


Rameswaram Island | Click on image for Credits

हमारे देश के सबसे बड़े तीर्थ स्थलों में से एक रामेश्वरम मंदिर में दर्शन करने के लिए पुरे साल श्रद्धालुओं की भीड़ देखी जा सकती है। लेकिन इसके अलावा कुछ ऐसे उत्सव भी है जो की इस मंदिर में बड़े उत्साह से मनाये जाते है। और यहाँ आयोजित किये जाने वाले उत्सवों का हिस्सा बनने के लिए पुरे देश-दुनिया से श्रद्धालु रामेश्वरम आते है।

यहाँ पर जो त्योंहार सबसे प्रमुखता से मनाया जाता है वो है महाशिवरात्रि। क्योंकि रामेश्वरम मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और हिन्दू धर्म में शिवरात्रि भगवान शिव का सबसे बड़ा त्योंहार माना जाता है, इसलिए इस मंदिर में शिवरात्रि का त्योंहार 10 दिनों तक मनाया जाता है।

शिवरात्रि के अलावा मई और जून महीने में रामेश्वरम मंदिर में वसंतोत्सवम नाम का उत्सव भी मनाया जाता है, यह त्योंहार भी पुरे 10 दिन तक मनाया जाता है। इन दोनों त्योंहार के अलावा थिरुक्कल्याणम नाम का त्योंहार भी यहाँ पर धूमधाम से मनाया जाता है।

थिरुक्कल्याणम नाम का त्योंहार रामेश्वरम मंदिर में पुरे 17 दिन तक चलता है जिसे देखने के लिए बहुत ज्यादा भीड़ मंदिर परिसर में जमा होती है।

रामेश्वरम के पास घूमने की जगह – Places To Visit Near Rameswaram In Hindi

रामसेतु, धनुष्कोटि, इंदिरा गाँधी सेतु, अदम्स ब्रिज, पामबन ब्रिज, अग्निथीर्थम, अरियामन बीच

रामेश्वरम में कहाँ रुके – Hotels in Rameswaram in Hindi

Hotels in Rameswaram | Ref img

एक प्रसिद्ध धार्मिक तीर्थ स्थल होने के की वजह से रामेश्वरम में श्रद्धालुओं के रुकने के लिए धर्मशाला और होटल्स दोनों ही तरह की सुविधाएँ उपलब्ध है। इसके अलावा बहुत सारी ऑनलाइन होटल बुकिंग वेबसाइट भी रामेश्वरम में होटल बुक करने की सुविधा उपलब्ध करवाती है।

रामनाथपुरम में बनी हुई बहुत सारी धर्मशालों के फ़ोन नंबर आपको गूगल पर उपलब्ध मिल जाएंगे, आप वहाँ पर कॉल करके अपने लिए धर्मशाला में रूम बुक करवा सकते है।

रामेश्वरम कैसे पहुँचे – How To Reach Rameswaram in Hindi

How to reach Rameswaram | Ref img

हवाई मार्ग से रामेश्वरम कैसे पहुँचे – How To Reach Rameswaram By Air in Hindi

एक टापू पर स्थित होने की वजह से रामेश्वरम में अपना कोई हवाई अड्डा नहीं है। रामेश्वरम के सबसे नजदीकी हवाई अड्डा मदुरै का हवाई अड्डा है। मदुरै हवाई अड्डे से रामेश्वरम की दुरी मात्र 173 किलोमीटर है।

मदुरै एयरपोर्ट भारत के प्रमुख एयरपोर्ट से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। मदुरै से आप टैक्सी, कैब, बस और रेल मार्ग द्वारा रामेश्वरम बड़ी आसानी से पहुँच सकते है।

रेल मार्ग से रामेश्वरम कैसे पहुँचे – How To Reach Rameswaram By Train in Hindi

रामेश्वरम के रेलवे स्टेशन का नाम रामेश्वरम रेलवे स्टेशन है, और यह रेलवे दक्षिण भारत के लगभग सभी शहरों से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा भारत के कई प्रमुख रेलवे स्टेशन से आपको रामेश्वरम के लिए नियमित रूप रेल सेवा उपलब्ध हो जायेगी।

सड़क मार्ग से रामेश्वरम कैसे पहुँचे – How To Reach Rameswaram By Road in Hindi

रामेश्वरम राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 87 के द्वारा दक्षिण भारत के कई प्रमुख शहरों से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।  चेन्नई, मदुरै और त्रिची जैसे शहरों से रामेश्वरम के लिए नियमित रूप से बस सेवा उपलब्ध रहती है। इसके अलावा तमिलनाडु के कई अन्य शहरों से भी आपको रामेश्वरम के लिए बस और टैक्सी सेवा उपलब्ध हो जायेगी।

तमिलनाडु के अलावा दक्षिण भारत के कई अन्य राज्यों के प्रमुख शहरों से भी रामेश्वरम के लिए नियमित रूप से बस सेवा उपलब्ध रहती है। इसके अलावा आप टैक्सी, कैब और अपने निजी वहां की सहायता से भी रामेश्वरम बड़ी आसानी से पहुंच सकते है।

Chennai to Rameswaram Distance – 559 KM

Madurai to Rameswaram Distance – 173 KM

Trichy to Rameswaram Distance – 235 KM

Visakhapatnam to Rameswaram Distance – 1346 KM

Bhubaneswar to Rameswaram Distance – 1775 KM

(अगर आप मेरे इस आर्टिकल में यहाँ तक पहुंच गए है तो आप से एक छोटा से निवदेन है की नीचे कमेंट बॉक्स में इस लेख से संबंधित आपके सुझाव जरूर साझा करें, और अगर आप को कोई कमी दिखे या कोई गलत जानकारी लगे तो भी जरूर बताए।  में यात्रा से संबंधित जानकारी मेरी इस वेबसाइट पर पोस्ट करता रहता हूँ, अगर मेरे द्वारा दी गई जानकारी आप को पसंद आ रही है तो आप अपने ईमेल से मेरी वेबसाइट को सब्सक्राइब जरूर करे, धन्यवाद )

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